भिग जाती होगी तु भी शायद बारिश मैं ,
रेह जाता हूँ में बिलकुल धुप सा यहॉँ …
बुँदे तेरे चेहरे पे नाचती होगी अभी ,
में कंकड़ सा गिरता पड़ता हूँ यहाँ ...
तुझसे फ़िज़ाओं में रुहः आती होगी ,
में शुष्क टहनियों सा जीता हूँ यहाँ ….
मट्टी कि गीली खुश्बू खिलखिलाती होगी तुम्हे ,
में धूल बनके उडाता फिरता हूँ यहाँ ...
तू शायद फिरसे खिलने के लिये ज़िंदा हो रही है कहीं ,
भूल के सब क़ुछ में भी , खो चला हूँ खुद ही में यहाँ। ... !!!
`मित्र
रेह जाता हूँ में बिलकुल धुप सा यहॉँ …
बुँदे तेरे चेहरे पे नाचती होगी अभी ,
में कंकड़ सा गिरता पड़ता हूँ यहाँ ...
तुझसे फ़िज़ाओं में रुहः आती होगी ,
में शुष्क टहनियों सा जीता हूँ यहाँ ….
मट्टी कि गीली खुश्बू खिलखिलाती होगी तुम्हे ,
में धूल बनके उडाता फिरता हूँ यहाँ ...
तू शायद फिरसे खिलने के लिये ज़िंदा हो रही है कहीं ,
भूल के सब क़ुछ में भी , खो चला हूँ खुद ही में यहाँ। ... !!!
`मित्र
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