Friday, 28 March 2014

भिग जाती होगी तु भी शायद बारिश मैं

भिग जाती होगी तु भी शायद बारिश मैं ,
रेह जाता हूँ में बिलकुल धुप सा यहॉँ …

बुँदे तेरे चेहरे पे नाचती होगी अभी ,
में कंकड़ सा गिरता पड़ता हूँ यहाँ ...

तुझसे  फ़िज़ाओं में रुहः आती होगी ,
में शुष्क टहनियों सा जीता हूँ यहाँ ….

मट्टी कि गीली खुश्बू खिलखिलाती होगी तुम्हे ,
में धूल बनके उडाता फिरता हूँ यहाँ ...

तू शायद फिरसे खिलने के लिये ज़िंदा हो रही है कहीं ,
भूल के सब क़ुछ में भी , खो चला हूँ खुद ही में यहाँ। ... !!!

`मित्र

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