Friday, 7 November 2014

एक शहर सा कुछ बस गया है मुझ में..

एक शहर सा कुछ बस गया है मुझ में..
शहर जो दिन का नहीं..
अँधेरी अकेली रातों का है ...
जिसे न किसी की खैर है , जिसे न किसी से बैर है...

ये शहर , जो अपने आप के प्यार में गुमशुदा सा है,
सड़क के किनारे ,वही पत्थरो का तकियां इसे भा सा गया है...

कुछ चीखे ,कुछ आहटे सुनी तो है इसने, पर शायद अनसुनी कर दी होगी..

मेरे इस शहर में बस में ही बसता हूँ..
ये रात का शहर सांस लेता है...
जब दिन के शहर की सारी मिले बंध होती है...

ये हस भी लेता है जब कुछ गरीब बच्चो को खाना नसीब होता है..
और चंद लम्हों के लिए उनके होठों पे मुस्कराहट देखता है...
ये आंसू  को  रास्ता भी देता है  जब , गवर्मेन्ट अस्पताल में कोई माँ बाप खोता है ...

ये शहर जल उठता है ,अंदर आग सा कुछ, हडकंप सा मच जाता है..
जब किसी की बहन,माँ , बेटी  या पत्नी को खिलौना बना दिया जाता है ...

पर है तो ये एक शहर ही ,क्या करेगा !!!

वही सड़क के किनारे सो जाएगा , तारों को ढूंड ने की कोशिश में....

~ मित्र

कभी कोई समां ऐसा हो...

कभी कोई समां ऐसा हो...
तेरा भी हाल मेरे जैसा हो...

तू चाहे मुझे टूट के...
में चला जाऊ तुझसे रूठ के..
कभी कोई समां ऐसा हो...

तू सो ना पाए मेरी यादों में,
करवटे बदले मेरी चाहों में ,
रंग गहरे हो तेरे सपनो के,
में ना बनू तेरा, तेरा ही होके
कभी कोई समां ऐसा हो...
तेरा भी हाल मेरे जैसा हो...

न सुनु कोई बात, ना समजू में तुम्हे,
न चाहूँ, न देखू में तुम्हे,
ढूंढे तेरी भी नज़रे मुझे दीवानी होक,.
तू भी समजे बात मेरी , मुझे खोके..

कभी कोई समां ऐसा हो...
तेरा भी हाल मेरे जैसा हो...
~ मित्र

ન જાણે કેમ ...

ન જાણે કેમ !
ન જાણે કેમ ...
એમને જોતા જ થઇ ગયો પ્રેમ ... ન જાણે કેમ ...
ફરી થી જાણે આજે , પ્રેમ ગાથા...
સપના કહી ગયા....
ન જાણે કેમ ...


જતા એ મંદિર ને પૂજા... મારી થઇ જતી..
ખુલી આંખો એજ સાચી.. ઈબાદત થઇ જતી...
પેહલી વાર જ્યારે, જોયા એમને..
જોતા રહી ગયા...


ન જાણે કેમ ...
એમને જોતા જ થઇ ગયો પ્રેમ ... ન જાણે કેમ ...(2)

હવે આ દિલ છે તમારું..રાખો.. ઠુકરાવી દો...
જીતવું ગમશે અમને... ચાહે.. હરાવી દો..
ભલે ને હારી આજે... બાજી દિલ ની...
તમને જીતી ગયા....

ન જાણે કેમ !
ન જાણે કેમ ...
એમને જોતા જ થઇ ગયો પ્રેમ ... ન જાણે કેમ ...
ફરી થી જાણે આજે , પ્રેમ ગાથા...
સપના કહી ગયા....
ન જાણે કેમ ...

~ મિત્ર